पियवा के खोजत भटकि जाला जीयरा, जबले रहबा विषय के अधीन बाबू

 (27)

पियवा के खोजत भटकि जाला जीयरा



पियवा के खोजत भटकि जाला जीयरा ।। टेक।।

वाणी के जाल में फसल बा शेरवा।

मनिया में ओकरे बैठल बा सियरा ।। 1 ।।

धरती आकाश पाताल मे खोजे

भइले दूर जवन रहेला नियरा ।। 2 ।।

कहले कुमार जब मिलले विवेकी

तुहके दिखा दिहें खोली के हियरा ।। 3।।



(28)


जबले रहबा विषय के अधीन बाबू



जबले रहबा विषय के अधीन बाबू ।

तबले मनवा रही तुहार मलीन बाबू । टेक।।

   जब तक जिभिया चाहत रही स्वाद हो

   तब तक कैसे करबा हरी जी के याद हो

जबले खात रही मांस और मीन बाबू-तबले०

जब तक ऑखिया से रूपवा निहरबा

   तब तक आपन स्वरुपवा न जनवा

   शौक सिंगार में रहबा तू लीन बाबू - तबले ०-

कीर्तन भजन न सुनबा तू कान से

रसिक शब्द तुहरे उतरी न ध्यान से

   जबले गीतिया तुहार अश्लील बाबू-तबले०-

    कहले कुमार एक बाटे उपाई

अपने तू इंद्री के रखिहा दबाई

जबले बतिया के होई न यकीन बाबू- तबले०-


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